वह अपनों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे स्वीकार किया, और उसके नाम पर विश्वास किया, उन सभों को उसने प्रभु की सन्तान बनने का सामर्थ दिया (योहन १:११-१२)।
वह अपनों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे स्वीकार किया, और उसके नाम पर विश्वास किया, उन सभों को उसने प्रभु की सन्तान बनने का सामर्थ दिया (योहन १:११-१२)।
यहां उल्लिखित प्रभु के बच्चें, प्रभु के यथार्थ बच्चें हैं, जो अंतिम समय में इस पृथ्वी पर जन्म लेते हैं और जिनके प्रकट होने के लिए पूरी सृष्टि प्रतीक्षा कर रही है, क्योंकि प्रभु के इन बच्चों के द्वारा ही सृष्टि को विकृति की गुलामी से मुक्त किया जाएगा (रोमियों ८:१९-२३)।
अपने पहले आगमन में, येशु क्रिस्त को अपने लोगों के पापों के प्रायश्चित के लिए बलि के रूप में अपना जीवन अर्पित करने के लिए भेजा गया था (मारकुस १०:४५)। इसलिए येशु क्रिस्त ने भविष्यवाणी की, कि मनुष्य के पुत्र को बड़ी पीड़ाओ से गुजरना होगा, और धर्मगुरुओं, मुख्य पुरोहितों और शास्त्रियों द्वारा उन्हें ठूकराया जाएगा, और मार डाला जाएगा, और तीसरे दिन वह जिलाये जाएंगे" (लूकस ९:२२)। उस समय जीनेवाले प्रभु के लोगों ने जीवन के प्रभु को ठुकरा दिया (प्रेरितों ३:१४-१५)।
हालाँकि, यह प्रभु पिता का हित था, कि उनके पुत्र, मुक्तिदाता को घायल किया जाए, निंदित किया जाए और मार दिया जाए (यशायाह ५३:९-१०)। प्रभु पिता ने अपने प्रवाचकों के द्वारा भविष्यवाणी की, कि मुक्तिदाता को उनके लोगों द्वारा अस्वीकार कर दिया जाना चाहिए (प्रेरितों ३:१७-१८)। यदि मुक्तिदाता को उनके लोगों ने ठुकराया नहीं होता, तो उनके लिए क्रूस पर मरना संभव नहीं होता। तब उनकी पीड़ा और मृत्यु के बारे में लिखा गया प्रभु का वचन पूरा नहीं होता। इसीलिए येशु क्रिस्त ने लोगों को सख्ती से आदेश दिया, कि वे कभी भी उनके चमत्कारों को प्रचारित न करें और बुरी आत्माओं को यह बताने से रोका, कि वह वास्तव में कौन थे और अपने शिष्यों से कहा, कि वे उनकी मृत्यु तक, कभी भी उनका खुलासा न करे (मारकुस ५:४२-४३, मारकुस १:३४, मत्ती १६:२०)।
लेकिन, यह सर्वशक्तिमान प्रभु का हित है, कि हर कोई उनके पुत्र को स्वीकार करें, जब वह दोबारा इस पृथ्वी पर आए और उनके नाम - इम्मानुएल - पर विश्वास करें। केवल वे ही, जो उन पर विश्वास करते हैं और उन्हें स्वीकार करते हैं, उन्हें अनंत जीवन दिया जाएगा। जो लोग प्रभु के पुत्र में उनके दूसरे आगमन पर विश्वास नहीं करते, वे ऐसे लोग हैं, जिनको पहले ही दोषी ठहराया जा चुका है (योहन ३:१६-१८)।
प्रभु का दूसरा आगमन और उनका महिमापूर्ण प्रत्यागमन दो अलग-अलग घटनाएँ हैं। प्रभु का वचन यह नहीं सिखाता, कि जब प्रभु के पुत्र स्वयं को बादलों में प्रकट करते है, तो लोगों के पास उन्हें स्वीकार करने या अस्वीकार करने का विकल्प या अवसर होता है। इसके बजाय, इस पृथ्वी के निवासी, संसार पर आने वाली घटनाओं के डर और पूर्वाभास से बेहोश हो जाएंगे (लूकस २१:२५-२८)। प्रभु का वचन हमें चेतावनी देता है, कि उस समय लोग मेम्ने, इम्मानुएल और प्रभु पिता के क्रोध से खुद को छिपाने की व्यर्थ कोशिश करेंगे (प्रकाशन ६:१५-१७)।
तो, प्रभु पिता का हित यह है कि, अब जब मुक्तिदाता इस पृथ्वी पर है, तो प्रभु के बच्चों को उन्हें अवश्य स्वीकार करना चाहिए। प्रभु चाहते है, कि हम उनके पुत्र को अपने मुक्तिदाता, प्रभु, जीवन, नाथ और राजा के रूप में स्वीकार करें। यह प्रभु के हित के अनुसार कार्य है - प्रभु द्वारा भेजे गए पर विश्वास करना (योहन ६:२८-२९)। प्रभु के पुत्र अब उन में विश्वास करने वालों को प्रभु के यथार्थ बच्चें बनने की शक्ति प्रदान करते हैं (योहन १:१२-१३)।
इम्मानुएल के बारे में प्रचार के द्वारा ही लोगों को उन पर विश्वास करना चाहिए (रोमियों १०:१४-१७)। जो लोग, प्रभु के पुत्र के बारे में प्रचार सुनकर विश्वास नहीं कर सकते, वे उसे देखने या प्रमाण दिए जाने के बाद भी विश्वास करने में सक्षम या इच्छुक नहीं होंगे। विश्वास सुनने से आता है और जो सुना जाता है वह मुक्तिदाता के बारे में प्रचार है। येशु के प्रथम आगमन में जो हुआ, वह इस वास्तविकता को साक्ष्य देता है। वास्तव में, येशु क्रिस्त ने जब २००० साल पहले भविष्यवाणी की थी, कि जो लोग उन्हें देखकर नहीं, बल्कि सुनकर विश्वास करते हैं, वे धन्य हैं, यह वह उन लोगों के बारे में उल्लेख कर रहे थे, जो अब उन पर विश्वास करते हैं (योहन २०:२९)।
ये देखो! राजाओं
का राजा
और प्रभुओं
का प्रभु,
यहीं इस
पृथ्वी पर
है!
येशु क्रिस्त, बहुतों के पापों को हरने के लिए एक बार अर्पित हुए, वह दूसरी बार प्रकट होंगे - पाप के कारण नहीं, बल्कि उन लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए जो उनकी प्रतीक्षा करते हैं। (इब्रानियों ९:२८)
उसे दिन लोग यह कहेंगे, “देखो, यही है हमारा प्रभु; हमने उनकी ही प्रतीक्षा की थी कि वह हमें बचाएंगे। यही प्रभु है, हमने उनकी ही प्रतीक्षा की थी। आओ, हम उनके उद्धार के कारण आनंद मनाएं, हर्षित हो। (यशायाह २५:९)।
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