मुक्ति अभी पूरा होना बाकी है - 2

हमें जो मुक्ति मिली क्या वो सम्पूर्ण मुक्ति है? येशु क्रिस्त के माध्यम से प्राप्त हुई मुक्ति और उनके दूसरे आगमन पर उनके द्वारा प्राप्त होने वाली मुक्ति को प्रभु के वचन में विभाजित करके लिखा गया है।

मुक्ति अभी पूरा होना बाकी है - 2

मुक्ति अभी पूरा होना बाकी है  

हमें जो मुक्ति प्राप्त हुई है, क्या वह पूर्ण मुक्ति है? दरअसल, जिन लोगों ने दावा किया कि वे बचाएं गये है, उन्होंने इस बात की जांच ही नहीं की, कि मुक्ति पूर्ण थी या नहीं। उन्होंने जांच-पड़ताल नहीं की, कि वह मुक्ति क्या है, जिसकी प्रभु ने कल्पना की है और चाहते हैं, कि उनके बच्चों को यह प्राप्त हो। किसी ने यह नहीं जांचा, कि क्या उसे फिर से एक मुक्तिदाता का और अभी प्राप्त होने वाले मुक्ति का इंतजार करना है। क्रिस्तियों ने सोचा, कि मुक्तिदाता की प्रतीक्षा करना, मुक्तिदाता येशु क्रिस्त को अस्वीकार करने के तुल्य है।

क्या प्रभु वचन हमें यह सिखाता है, कि एक मुक्ति अभी भी प्राप्त होनी बाकी है? प्रभु का वचन उस मुक्ति के बीच अंतर करता है, जो हमें येशु क्रिस्त द्वारा प्राप्त हुई और वह मुक्ति जो हमें अभी भी उसी येशु क्रिस्त, प्रभु के एकलौते पुत्र के द्वारा प्राप्त होनी है।

पर किसी ने भी इस मुक्ति के विषय में लोगों को सिखाया नहीं। प्रभु के वचन के बार-बार दोहराए जाने के बावजूद, कि प्रभु के लोगों को एक उत्कृष्ट मुक्ति प्राप्त होनी बाकी है, किसी ने भी लोगों को इसकी खोज करने के लिए तैयार नहीं किया।

क्योंकि, तथाकथित विद्वान और अधिकारी उन शिक्षाओं के अभिवक्ता और लाभार्थी बन गए हैं, जो प्रभु के वचन को निरर्थक बना देते हैं।

उनके तर्क-वितर्कों के द्वारा, जिसे मिथ्या रूप से ज्ञान कहा जाता है, इस संसार के देवता ने उनके हृदयों को अंधा बना दिया है, ताकि वे प्रभु के पुत्र के महिमामय शुभ समाचार का प्रकाश न देख सकें (२ कुरि. ४:३-४)।

वे सत्य की पूर्णता तक नहीं पहुंच सकें। प्रभु के राज्य की खोज छोड़कर, वे संसार के राज्य के प्रबंधक और लाभार्थी बन गए। किंतु, प्रभु वचन साक्ष्य देता है, कि प्रभु के स्वर्गदूत भी इस मुक्ति के रहस्य को देखने के लिए तरसते हैं (१ पतरस १:५-१२)।

वास्तव में हम कौन हैं? प्रभु ने अपने बच्चों की सृष्टि क्यों की? प्रभु अपने बच्चों के द्वारा शैतान और पिशाचों को कैसे नष्ट करेंगे? वह कौन-सी संपत्ति है, जो प्रभु ने अपने बच्चों के लिए तैयार की है? मुक्ति की वह कौन-सी योजना है, जिसे प्रभु अंतिम समय में अपने पुत्र के द्वारा कार्यान्वित करेंगे? मनुष्य कैसे अनुग्रहीत हो जाएंगे? प्रभु की संतानें प्रभु के शाश्वत राज्य को कैसे प्राप्त करेंगे? जो प्रभु के उत्कृष्ट विचारों और कल्पनाओं को प्राप्त करते हैं, केवल वे ही उन सपनों को और उन्हें पूरा करने वाली योजनाओं को समझ सकते हैं, जिसे प्रभु पिता ने अपने बच्चों के लिए देखें हैं(यशायाह ५५:८-९)। जब प्रभु इन दिव्य रहस्यों को प्रकट करते हैं और जो इसे समझते हैं, केवल वे ही, येशु क्रिस्त द्वारा दिए जाने वाले मुक्ति की प्रतीक्षा कर सकते हैं और खुद को तैयार कर सकते हैं।

जाहिर सी बात है, जहां तक मनुष्य और उनके छोटे जीवन काल का सवाल है, प्रभु की इस योजना में लगने वाला समय बहुत लंबा लग सकता है। लेकिन ऐसा इसलिए है, क्योंकि हम प्रभु के 'समय' और मनुष्य के समय के बीच अंतर नहीं कर पा रहे हैं। प्रभु अनन्तता में वास करते हैं और इसी अनन्तता तक प्रभु के बच्चें भी जीवित रहेंगे। शाश्वतता या अनन्तता की तुलना में, इस पृथ्वी पर मनुष्यों के ये कुछ वर्ष समुद्र में पानी की एक बूंद और रेत के एक कण के समान हैं (प्रवक्ता १८:१०)।

हम इस सचाई को देख सकते हैं, कि हमें अभी भी, प्रभु की पुस्तक में उल्लेखित मुक्ति प्राप्त करनी बाकी है।

मनुष्य अब तक सज़ा (अभिशापसे मुक्त नहीं हुआ।

सज़ा या अभिशाप से मुक्त होना ही, क्या मुक्ति नहीं है? यदि एहसास हो जाए, कि पाप के कारण मनुष्य पर क्या श्राप आ पड़ा, तभी हम मुक्ति की आवश्यकता को स्पष्ट रूप से समझ पाएंगे। अदन की वाटिका में मनुष्य जिस गुलामी में फंसा, जब वह उसमें से पूरी तरह मुक्त होता है, तभी मुक्ती पूर्ण होती है।

एक व्यक्ति आत्मा, मन और शरीर का बना हुआ है। मनुष्य को प्रभु के स्वरूप और सादृश्यता में बनाया था (उत्पत्ति १:२६-२८)। उनकी सादृश्यता उनकी महिमा है; उनका स्वरूप उनकी अनन्तता है। दूसरे शब्दों में, प्रभु ने अपने बच्चों को अनन्त युवत्व और अपने अक्षय जीवन के साथ बनाया। प्रभु ने मनुष्य को अपनी महिमा दी और सारी सृष्टि पर आधिपत्य दिया(प्रवक्ता १७:३-४, ज्ञान २:२३)।

परन्तु मनुष्य ने यह सब तब खो दिया, जब उसने शैतान का झूठ सुना और प्रभु की आज्ञा का उल्लंघन करके पाप किया। पाप के कारण न केवल मनुष्य की आत्मा, बल्कि मन और शरीर भी श्राप के अधीन हो गया। मनुष्य ने अनन्त जीवन खो दिया। शरीर का जीवन रक्त में वास करता है (लैवीय व्यवस्था १७:११)। इस प्रकार मनुष्य बीमारियों, बुढ़ापे और मृत्यु (एक शब्द में कहें- जिर्णता) का गुलाम बन गया।

पौलुस, जिसने येशु क्रिस्त के द्वारा मुक्ति प्राप्त की, विलाप करता है:मैं कितना अभागा मनुष्य हूँ ! इस मृत्यु के अधीन रहने वाले शरीर से मुझे कौन मुक्त करेगा ? (रोमियों ७:२४)। यहां, पौलुस शरीर से आत्मा की मुक्ति के लिए प्रार्थना नहीं कर रहा है। यदि शरीर से आत्मा की मुक्ति सच्ची मुक्ति होती, तो प्रभु ने मनुष्य के लिए शरीर नहीं बनाया होता और उसमें जीवन निवेश नहीं किया होता (उत्पत्ति २:७); वह उस शरीर में आत्मा को नहीं उड़ेलते (सभा-उपदेशक ११:५, युदास ४:५)।

यहाँ जो बताया गया है यह शरीर की मुक्ति है। इसलिए प्रभु का वचन साक्ष्य देता है: और सृष्टि ही नहीं, वरन् हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं। हमें तो परिशुद्ध आत्मा मिल चुका है, जो प्रभु के कृपादानों का प्रथम फल है। लेकिन हम अपने शरीर की विमुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब हम प्रभु  की दत्तक संतान होंगे। इस आशा में हमें मुक्ति प्राप्त हुई है(रोमियों ८:२३-२४)। इस प्रार्थना का उत्तर अभी तक नहीं आया है!

मनुष्य के पतन के कारण पृथ्वी और सृष्टि भी शाप के अधीन हो गयी। सारी सृष्टि आज भी जिर्णता के अधीन है (रोमियों ८:१९-२०,२२)। प्रभु ने सभी प्राणियों को इसलिए बनाया, ताकि वे प्रभु की संतानों के लिए फल उत्पन्न करें और उनकी सेवा करें। लेकिन जो सृष्टि अब व्यर्थता के अधीन है, वह प्रभु के बच्चों की सेवा करने में सक्षम नहीं है। जब तक मनुष्य प्रभु की संतानों की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक व्यर्थता की गुलामी में पड़ी सृष्टि को स्वतंत्रता नहीं मिलेगी। इसलिए, प्रभु का वचन कहता है:क्योंकि समस्त सृष्टि उत्कण्ठा से उस दिन की प्रतीक्षा कर रही है, जब मनुष्य प्रभु की संतान के रूप में प्रकट होंगे। यह सृष्टि तो इस संसार की असारता के अधीन हो गयी है-अपनी इच्छा से नहीं, बल्कि उसकी इच्छा से, जिसने उसे अधीन बनाया है- किन्तु यह आशा भी बनी रही कि वह विकृति की दासता से मुक्त हो जायेगी और प्रभु की सन्तान की महिमामय स्वतन्त्रता की सहभागी बनेगी। हम जानते हैं कि समस्त सृष्टि मिलकर अब तक मानो प्रसव पीड़ा में कराह रही है (रोमियों ८:१९-२२)

मनुष्य की पूर्णता तब है जब उसका शरीर, आत्मा और जीवन परिपूर्ण और बिना किसी दोष के हो (अर्थात जब मनुष्य परिशुद्ध, अमर और अनश्वर और महिमामय हो जाता है) (१ थिस्सलुनीकियों. ५:२३)। प्रभु में यह पूर्णता है। इसलिए, येशु क्रिस्त ने हमें उपदेश दिया: परिपूर्ण बनो, जैसे तुम्हारा स्वर्गीय पिता परिपूर्ण है (मत्ती ५:४८)। मनुष्यों को अब तक यह पूर्णता प्राप्त नहीं हुई है। इन सब से यह स्पष्ट है कि मनुष्य को अभी भी मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है।

) मनुष्य को उस उद्देश्य के लिए योग्य बनना होगा, जिसके लिए प्रभु ने उसे बनाया है।

प्रभु ने अपने बच्चों(लोगों) को उनके साथ अनंत काल तक परिशुद्ध और उनके सामने स्नेह में निर्दोष रहने के लिए बनाया (इफिसियों १:४)। शरीर और मन के बिना हम किसी से स्नेह नहीं कर सकते। यदि स्नेह को निर्दोष (शुद्ध) बनाना है, तो पाप को हमारे शरीर से दूर करना होगा (परंतु, हमारे शरीर में अब भी पाप है -1 योहन १:८, रोमियों. ७:२१-२४)। उसके लिए, पाप और मृत्यु के नियम को हमारे शरीर से हटाया जाना होगा (१ कुरिन्थियों. १५:५६)। मनुष्य के शरीर को जिर्णता के नियम की गुलामी से मुक्त करना होगा। यदि मनुष्य को सदा जीवित रहना है, तो उसके पास एक अमर और अनश्वर शरीर होना चाहिए। उसके लिए मृत्यु को नष्ट होना होगा। बाइबिल कहता है, कि यह इस पृथ्वी पर अवश्य घटित होगा। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हो सका है।


) मनुष्य को अनन्त जीवन मिलना बाकी है।

जिस मनुष्य ने पाप किया और जिर्णता का गुलाम बना, उसके हृदय की सबसे बड़ी इच्छा, अनन्त जीवन प्राप्त करना है। शरीर का जीवन रक्त में है (लैवीय व्यवस्था. १७:११)।

तो, एक अमर और अनश्वर शरीर के साथ प्रभु के सम्मुख अनंत काल तक निवास करना ही, अनंत जीवन है। और यह वो प्रतिज्ञा है, जो प्रभु ने जिर्णता का गुलाम बने मनुष्य को दी थी(१ योहन २:२५)। अनन्त जीवन मुक्ति की परिपूर्णता है।

मनुष्य के शरीर को केवल पुनरुत्थान और रूपान्तरीकरण द्वारा ही मुक्ति मिलती है। ये दोनों घटनाएँ अभी इस पृथ्वी पर घटित होनी बाकी हैं (१ कुरिन्थियों. १५:५१-५५)।

प्रभु का वचन स्पष्ट रूप से सिखाता है, कि अब तक किसी ने भी अनन्त जीवन प्राप्त नहीं किया है या पूर्णता प्राप्त नहीं की है (इब्रानियों ११:३९-४०)। प्रभु का वचन कहता है: आप तो मर चुके हैं, आपका जीवन मसीह के साथ प्रभु में छिपा हुआ है। मसीह ही आपका जीवन हैं। जब मसीह प्रकट होंगे तब आप भी उनके साथ महिमान्वित हो कर प्रकट हो जायेंगे(कुलुस्सियों ३:३-४)।

हम अनन्त जीवन प्राप्त करेंगे जहाँ येशु क्रिस्त महिमा के साथ प्रकट होंगे। प्रभु का वचन फिर कहता है: प्रभु सियोन को पुनः निर्मित करेगा, वह अपनी महिमा में प्रकट होगा। (स्त्रोत-गीत १०२:१६)। वहां येशु क्रिस्त हमारे दुर्बल शरीर को अपने महिमामय  शरीर के अनुरूप रूपांतरित करेंगे (फिलिप्पियों ३:२०-२१)। हमें अभी तक अक्षय जीवन प्राप्त नहीं हुआ है - ऐसा जीवन जहाँ बुढ़ापा, बीमारियाँ और मृत्यु नहीं है। इससे यह स्पष्ट हो जाता है, कि हमें अभी भी मुक्ति की पूर्णता प्राप्त नहीं हुई है।


) हमें अभी भी प्रभु पिता को देखने और उनके साथ रहने के लिए बचाया जाना बाकी है।

प्रभु ने मनुष्य को अपने साथ रहने के लिए सृष्ट किया। प्रभु एक स्नेही पिता है, जो अपने बच्चों के साथ रहना के लिए वांछित है और चाहते है कि उनके बच्चें उनके विश्राम में प्रवेश करें (प्रकाशन २१:१-३, इब्रानियों ४:८-१०)।

परन्तु प्रभु ने मूसा से कहा: ...तू मेरे मुख का दर्शन नहीं कर सकता; क्योंकि मनुष्य मुझे देखकर जीवित नहीं रह सकता। (निर्गमन ३३:२०)। इसका अर्थ है, कि मनुष्य अब तक प्रभु को मुखाभिमुख देखने के योग्य नहीं बना। लेकिन यह भविष्यवाणी की गई है, कि हमें यह योग्यता एक बार फिर प्राप्त होगी (स्त्रोत-गीत ८४:७)

प्रभु का वचन हमें यह प्रतिज्ञा देता है:पिता ने हमसे कितना महान प्रेम किया है ! - हम प्रभु की सन्तान कहलाते हैं और हम वास्तव में वही हैं। संसार हमें नहीं जानता, क्योंकि उसने प्रभु को नहीं जाना है। प्रियो ! अब हम प्रभु की सन्तान हैं, किन्तु यह अभी तक प्रकट नहीं हुआ कि हम क्या बनेंगे। हम इतना ही जानते कि जब पिता प्रकट होंगे, तो हम उनके सदृश बन जायेंगे; क्योंकि हम उनको वैसा ही देखेंगे जैसा कि वह वास्तव में हैं। जो कोई पिता से ऐसी आशा करता है, उसे वैसा ही परिशुद्ध बनना चाहिए, जैसा कि वह परिशुद्ध हैं।(१ योहन ३:१-३)। प्रभु जैसे है, वैसे उन्हें देखने और उन्हें जानने के योग्य, हम अब तक नहीं बने है(१ कुरिन्थियों १३:१२)।


) हमें, प्रभु के राज्य का अवकाशी बने के लिए बचाया जाना बाकी है।

प्रभु चाहते है कि उनके बच्चें प्रभु के राज्य के अवकाशी बने, जो अनश्वर है। बाइबिल एक झुंड के बारे में बात करता है, जिन्हें प्रभु राज्य देने में, वह प्रसन्न होते है (लूकस १२:३२)। येशु क्रिस्त ने यह भी वादा किया है, कि वह अपना राज्य एक झुंड (उसी झुंड) को देंगे(लूकस २२:२८-३०)। यह प्रभु का तीसरा राज्य है, जिसे येशु क्रिस्त ने प्रख्यापित किया था! यदि हम प्रभु के वचन की जाँच करें, तो हम देख सकते हैं, कि प्रभु के जो राज्य मनुष्य को अब तक प्राप्त हुए हैं, वे प्रभु के इस शाश्वत राज्य की ओर जाने वाला एक बढ़ाया गया कदम ही हैं।

यह वो प्रभु का राज्य है, जो शक्ति के साथ उतर आता है(मरकुस ९:१)। यह वो प्रभु का राज्य है, जिसे हमारी आँखों से देखा जा सकता है(योहन ३:३)। वास्तव में, इसी प्रभु के राज्य के आने के लिए येशु क्रिस्त ने अपने शिष्यों से प्रार्थना करने के लिए कहां (मत्ती ६:९-१०)।

यह वो प्रभु का राज्य है, जहां प्रभु के बच्चें सभी पूर्वपिताओं, नीतिमानों और प्रवाचकों के साथ भोज के लिए बैठेंगे(मत्ती ८:११)। यह वो प्रभु का राज्य है, जहां एक झुंड प्रभु के पुत्र के सिंहासन पर बैठेंगे और इस्राएल के बारह गोत्रों का न्याय करेंगे(लूकस २२:२८-३०)। भोज में बैठने और खाने के लिए, और सिंहासन पर बैठकर न्याय करने के लिए, हमें एक शरीर की आवश्यकता है।

लेकिन प्रभु का वचन चेतावनी देता है: भाइयो और बहिनो ! मेरे कहने का अभिप्राय यह है कि मांस और रक्त वाला मनुष्य प्रभु के राज्य का अधिकारी नहीं हो सकता और नश्वरता अनश्वरता की अधिकारी नहीं होती। (१ कुरिन्थियों १५:५०)। इसका मतलब है, प्रभु के राज्य के अवकाशी बने के लिए, हमारे शरीर को अमर और अनश्वर बनना होगा, क्योंकि प्रभु का तीसरा राज्य, एक अनश्वर राज्य है। किसी भी मनुष्य को अपना शरीर अमर्त्य व अनश्वर बनकर नहीं मिला है। केवल जब येशु क्रिस्त फिर से आएंगे और मृतकों को पुनरुत्थान और जीवित संतों को रूपांतरित करेंगे, तो ऊपर वर्णित झुंड अमर और अनश्वर बन जाएगा (१ कुरिन्थियों १५:५१-५५)।

प्रभु का वचन साक्ष्य देता है, कि प्रभु के परिशुद्ध जन इस शाश्वत राज्य के उत्तराधिकारी होंगे।राज्य और शासन, समस्त आकाश के नीचे पृथ्वी के सब राज्यों की महानता, सर्वोच्च प्रभु के भक्तों के जन-समूह को दी जाएगी। उनका राज्य शाश्वत राज्य होगा;पृथ्वी के सब शासक उनकी सेवा करेंगे वे उनकी आज्ञा का पालन करेंगे।” (दानिएल ७:२७)।

प्रभु के राज्य के उत्तराधिकारी होने वाले, प्रभु के परिशुद्ध जन कौन हैं? प्रभु के परिशुद्ध जन उनके पहलौठे बच्चें हैं(लूकस २:२३, इब्रानियों १२:२२-२४)। प्रभु का वचन साक्ष्य देता है, कि एक झुंड है जिसे प्रभु का पहलौठा कहा जाता है। वे प्रभु के बच्चों का झुंड हैं, जो प्रभु के पुत्र येशु क्रिस्त के साथ प्रभु से जन्मे थे। भले ही वे पहले आदम में निवेशित किए गए थे, वे इस पृथ्वी पर केवल अंतिम समय में जन्म लेते हैं(१ पतरस १:५)।

यह वो झुंड है, जो पाप और जिर्णता के नियमों से मुक्त होकर, प्रभु पिता के रक्त और मांस में सहभागिता प्राप्त कर, प्रभु के यथार्थ पुत्रत्व को प्राप्त करते है(रोमियों ८:१९-२४, इफिसियों १:५)। यह झुंड, जिनका आत्मा, शरीर और जीवन येशु क्रिस्त के महिमामय प्रत्यागमन पर परिशुद्ध और परिपूर्ण बनाया ज़ाएगा, वे प्रभु के इस राज्य के अवकाशी होंगे(१ थिस्सलुनीकियों ५:२३)। यह वो झुंड है, जिसे प्रभु ने अपने प्रिय बच्चों के साथ रहने के लिए बुलाया है(यिर्मयाह ३:१९)। ये वे ही हैं, जिन्हें प्रभु की इच्छा के अनुसार, पहले पूर्ण बनाया जाएगा(इब्रानियों ११:३९-४०)।

अपने दूसरे आगमन और युगों के अंत के चिन्हों का सारांश देते समय, येशु क्रिस्त ने चेतावनी दी:इसी तरह जब तुम इन बातों को होते देखोगे, तो यह जान लेना कि प्रभु का राज्य निकट है। (लूकस २१:३१)। यह वो प्रभु का राज्य हैं, जो येशु क्रिस्त के महिमामय प्रत्यागमन पर निचें उतर आता है। हमें अब तक यह राज्य प्राप्त नहीं हुआ है।

) प्रभु के बच्चों को प्रतिज्ञा के अनुसार अनुग्रहीत होना बाकी है।

प्रभु की दृष्टि में यथार्थ अनुग्रह यह नहीं हैं, जो आज लोग उस शब्द से समझते हैं। अभिशाप का ठीक विपरीत है, यथार्थ अनुग्रह। प्रभु ने अदन की वाटिका में मनुष्य को जो अनुग्रह दिया था, वह अवज्ञा के कारण नष्ट हो गया। इसलिए, प्रभु जो अपने बच्चों से स्नेह करते हैं, उन्होंने सबसे पहले उन्हें अनुग्रह देने की प्रतिज्ञा की। शैतान, जो मनुष्य पर आए शाप का कारण है, उसके नष्ट होने के बाद, प्रभु द्वारा पूर्णता में दिए गए उन सारे चीजों की पुनःस्थापना ही अनुग्रह है(उत्पति ३:१५)। प्रभु के बच्चें यथार्थ में अनुग्रहित होते हैं, जब उन्हें यह सब मिलता है, जो प्रभु ने उनके लिए तैयार किया है(१ कुरिन्थियों २:९)। प्रभु के बच्चें यथार्थ में अनुग्रहित होते हैं, जब वे प्रभु पिता के समान परिपूर्ण हो जाएंगे(मत्ती ५:४८, योहन १०:३५)।

यह वो प्रतिज्ञा है, जो प्रभु ने हव्वा और अब्राहम को दी। प्रभु ने अब्राहम को जो वादा किया था, वह यह था, कि प्रभु के समस्त परिवारों को उसकी एक संतान द्वारा यह अनुग्रह मिलेगा(उत्पति २२:१८, प्रेरित ३:२५)। इस पर गौर करें, कि अब तक न तो अब्राहम और न ही किसी अन्य पूर्वपिताओं को, प्रवाचकों या प्रेरितों को यह अनुग्रह प्राप्त हुआ है(इब्रानियों ११:३९-४०, २ तीमोथी ४:७-८, फिलिप्पियों ३:११-१४)।

यदि मनुष्य को अनुग्रहित होना है, तो शैतान को, जो अभिशाप और जिर्णता का कारण है, कुचलें जाना होगा। यह वास्तव में वो चुनौती थी, जो प्रभु ने अदन की वाटिका में शैतान को दी थी(उत्पति ३:१५)। प्रभु की चुनौती यह थी, कि जिस स्त्री को शैतान ने धोखा दिया था, उसी की संतान शैतान के सिर को कुचलेगी।

लेकिन, येशु क्रिस्त शैतान को नष्ट करनेवाला हव्वा की संतान नहीं हैं, जैसा कि क्रिस्तिय सोचते हैं। येशु क्रिस्त का जन्म प्रभु पिता से हुआ था(योहन १:१३); वह प्रभु के सत्व की मुहर है(इब्रानियों १:३); वह वचन, जिसने देह धारण किया(योहन १:१४)। वह आदम की संतान नहीं है, जिसे मिट्टी से लिया गया था। प्रभु का वचन साक्ष्य देता है, कि एक ही मनुष्य द्वारा संसार में पाप का प्रवेश हुआ और पाप द्वारा मृत्यु का। इस प्रकार मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गयी, क्योंकि सब पापी हैं।(रोमियों ५:१२)। पाप हर किसी में वास करता है (रोमियों ७:१९-२४, १ योहन २:८)। लेकिन प्रभु का वचन सिखाता है, कि येशु क्रिस्त में कोई पाप नहीं है और वह हमारे पापों को ढोने के लिए आएं थे(१ योहन ३:५)। येशु क्रिस्त हव्वा की संतान नहीं हैं।

इसके अलावा, येशु क्रिस्त ने शैतान को नष्ट भी नहीं किया। यदि शैतान नष्ट हो गया होता, तो अब संसार में पाप न होता; मृत्यु न होती, जो पाप का वेतन है; ऐसा कोई नियम नहीं होता, जो मनुष्य को शरीर, संसार और प्रकृति का गुलाम बनाता; सृष्टि व्यर्थता की दासता में न होती; प्रभु की संतानें अमर हो जातीं और अनुग्रह प्राप्त करतीं।

प्रभु ने पूर्व-निर्धारित किया था, कि शैतान को प्रभु के पुत्र येशु क्रिस्त नहीं, बल्कि हव्वा की एक संतान नष्ट करेगा। प्रभु की संतानें ही है, जिन्हें पिशाचों को भी नष्ट करना होगा(रोमियों १६:२०)। यह प्रभु के बच्चों को महिमान्वित करने के लिए है। लेकिन ऐसा करने के लिए उन्हें प्रभु के पुत्र द्वारा सभी गुलामी से मुक्त किये जाना होगा। प्रभु ने पहले ही निश्चय किया था, कि प्रभु के सभी बच्चें उनके पुत्र येशु क्रिस्त द्वारा मुक्ति प्राप्त करेंगे (इफिसियों १:५)। और ये अभी होना बाकी है।


) केवल वे ही आरोहित होंगे, जो बचाए गए हैं।

प्रभु का वचन सिखाता है, कि जब अंतिम तुरही बजेगी, तो जो येशु क्रिस्त में मर गए हैं, वे पुनःरुत्थान प्राप्त करेंगे और उनकी भेड़ों में जो जीवित हैं वे रूपांत्रित होंगे। इसलिए जो रूपांत्रित होते हैं और जो पुनःरुत्थान प्राप्त करते हैं, उन्हें बादलों पर उठा लिया जाएगा (१ थिस्सलुनीकियों ४:१६-१७)

उनमें से एक चीज़, जिसने लोगों की सोच पर कब्जा कर लिया है, जिसे वे रैपचर(संवहित किए जाना)कहते हैं। लेकिन, कौन उठा लिया जाएगा और यह कहां होगा? वे कौन-सी चीज़ें हैं, जो इस तथाकथित रैपचर से पहले होनी चाहिए? रैपचर और उस मुक्ति के बीच क्या संबंध है, जो प्रभु अंतिम समय में अपने बच्चों को देते हैं? हमें इन सवालों के जवाब कहां मिल सकते हैं? हमें इन सवालों के सही जवाब तभी मिलते हैं, जब प्रभु अंतिम समय में प्रकट होने वालें उस मुक्ति के रहस्यों को प्रकट करते है(१ पतरस १:५)। प्रभु अपने रहस्यों को प्रकट करने से पहले, लोग अपने मन में जो भी विचार बुनते हैं, वे सच्ची दैविक बातें नहीं हैं।

निःसंदेह, सभी लोग मनुष्य-पुत्र को बादलों पर आते हुए देखेंगे। परन्तु प्रभु का वचन यह स्पष्ट करता है, कि पृथ्वी के निवासी, जब उन्हें आते हुएं देखेंगे, तब वे डर के कारण विलाप करेंगे और आने वाली घटनाओं के पूर्वाभास से निर्बल हो जाएंगे(प्रकाशन १:७, मत्ती २४:३०, लूकस २१:२६-२८)। इसलिए, निश्चित ही सभी लोग संवहित नहीं किए जाएंगे।

जो लोग येशु क्रिस्त के दूसरे आगमन में उनके अपने हैं, वे पहले पुनःरुत्थान और रूपांतरिकरण प्राप्त करेंगे(१ कुरिन्थियों १५:२३)। प्रभु का वचन यह स्पष्ट करता है, कि येशु क्रिस्त के महिमामय प्रत्यागमन में कौन उनके अपने है। यह विशुद्धग्रंथों में भी लिखा है, कि कहां पुनरुत्थान और रूपांत्रीकरण दोनों घटित होंगे। केवल उसी स्थान से एक झुंड को प्रभु पिता की अगवानी के लिए उठाया जाएगा।

और तो और, वर्तमान समय में मनुष्य के पास वायुमंडल में ऊपर उठने की क्षमता भी नहीं है। प्रभु का वचन साक्ष्य देता है, कि हमारा शरीर कई प्रकार के नियमों के अधीन है, जो हमें ऐसा करने से रोकते हैं। यदि हम, अपने शरीर और प्रकृति के नियमों से मुक्त हो जाते हैं, तभी हम जमीन से ऊपर उठ सकते हैं। अब हमारे पास जो शरीर और रक्त है, वह प्रभु के अनश्वर राज्य का उत्तराधिकारी नहीं हो सकता, जहाँ प्रभु रहते है (१ कुरिन्थियों १५:५०)।

प्रभु के बच्चों को अब भी मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है। परन्तु वे इसे बादलों में उठाये जाने के बाद नहीं, बल्कि पहले प्राप्त करेंगे। येशु क्रिस्त को हमारे दुर्बल शरीरों को अपने महिमामय शरीर के अनुरूप बदलने के लिए इस पृथ्वी पर फिर से आना होगा(इब्रानियों ९:२८, फिलिप्पियों ३:२०-२१)। यह स्पष्ट है, कि इसी पृथ्वी पर पुनरुत्थान और रूपान्तरण दोनों घटित होंगे। इसके लिए, जिन लोगों को यह मुक्ति प्राप्त करनी है, उन्हें एक स्थान पर इकट्ठा किया जाना होगा(योहन १०:१६) और तैयारी के समय की आवश्यकता है(इब्रानियों १२:९-१२)। केवल वे ही, जो इस पृथ्वी पर प्रभु के पुत्र से मुक्ति प्राप्त करते हैं, इस पृथ्वी से उठाये जायेंगे।

प्रभु के सभी वचन, जो मुक्ति की प्रतिज्ञा करते हैं, जिसे प्रभु अंतिम समय में प्रकट करते हैं, उन्हें इस पृथ्वी पर ही पूरे होने होंगे। मुक्ति कोई ऐसी चीज़ नहीं है, जो हमें स्वर्ग पहुँचने के बाद मिलती है। यदि मुक्ति ऐसी चीज़ होती, जो हमें इस पृथ्वी पर नहीं मिलती, तो मुक्तिदाता को तब और अब आने की कोई आवश्यकता ही नहीं होती। और प्रभु के वचन ने हमें स्वर्ग से आनेवाले मुक्तिदाता की प्रतीक्षा करने के लिए नहीं कहा होता(फिलिप्पियों ३:२०)। तो प्रभु हमें स्वर्ग ले जाते और बचाते। लेकिन हम जानते हैं कि यह प्रभु की योजना नहीं थी और न ही है। इससे यह स्पष्ट है, कि प्रभु के वचन द्वारा प्रमाणित मुक्ति इस पृथ्वी पर ही प्रभु के बच्चों को प्राप्त करनी होगी। लोगों ने इस संबंध में गलतियाँ कीं क्योंकि उन्होंने कभी नहीं समझा कि यथार्थ मुक्ति क्या है।

(जारी रहेगा…)

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प्रभु के पुत्र जो प्रभु वचन है परिशुद्ध मां के गर्भ में वचन के रूप में आएं, न कि शरीर के साथ। तब प्रभु पिता के शरीर और रक्त में उनकी भागीदारी नहीं थी।

यथार्थ मुक्ति संपूर्ण व्यक्ति की मुक्ति है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा शामिल है।

वह अपनों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे स्वीकार किया, और उसके नाम पर विश्वास किया, उन सभों को उसने प्रभु की सन्तान बनने का सामर्थ दिया (योहन १:११-१२)।

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