मुक्ति अभी पूरा होना बाकी है - 1

हम जानते हैं कि प्रभु पिता ने मनुष्यों के लिए एक शाश्वत मुक्ति तैयार की है। वह कौन सी मुक्ति है जो येशु क्रिस्त ने अपने प्रथम आगमन में हमें दी? क्या वह मुक्ति सम्पूर्ण है? इस मुक्ति की पूर्णता क्या है? वे कब इसे प्रदान करेंगे?

मुक्ति अभी पूरा होना बाकी है - 1

मुक्ति अभी पूरा होना बाकी है

मैं कितना अभागा मनुष्य हूँ! इस मृत्यु के अधीन रहने वाले शरीर से मुझे कौन मुक्त करेगा ?...और सृष्टि ही नहीं, वरन् हम भी भीतर-ही-भीतर कराहते हैं। हमें तो परिशुद्ध आत्मा मिल चुका है, जो प्रभु के कृपादानों का प्रथम फल है। लेकिन हम अपने शरीर की विमुक्ति की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जब हम प्रभु की दत्तक संतान होंगे। ( रोमियों ७:२४ ,८:२३)

हमारा स्वदेश तो स्वर्ग है और हम स्वर्ग से आने वाले अपने मुक्तिदाता प्रभु येशु क्रिस्त की राह देखते रहते हैं। (फिलिप्पियों ३:२०)

उसी तरह क्रिस्त बहुतों के पाप हरने के लिए एक ही बार अर्पित हुए। वह दूसरी बार प्रकट होंगे - पाप के कारण नहीं, बल्कि उन लोगों को मुक्ति दिलाने के लिए, जो उनकी प्रतीक्षा करते हैं। (इब्रानियों ९:८)

 वह जिस सामर्थ्य द्वारा सब कुछ अपने अधीन कर सकते हैं, उसी के द्वारा वह हमारे तुच्छ शरीर का रूपान्तरण करेंगे और उसे अपने महिमामय शरीर के अनुरूप बना देंगे। (फिलिप्पियों ३:२१)


परिचय

जिन्होंने यह पहचाना, कि यह अंतिम समय है और येशु क्रिस्त के महिमामय प्रत्यागमन का समय निकट आ गया है, उन्हें प्रभु के उन मुक्तिदायक योजनाओं के बारे में, जो प्रभु इस अंतिम समय में कार्यान्वित करेंगे,  सूचित करने के उद्देश्य से यह लिखा गया है। ये वास्तविकताएं उन लोगों के लिए प्रस्तुत किए गए हैं, जो विश्वास करते हैं, कि केवल एक ही सच्चे प्रभु पिता है, और उनके पुत्र येशु क्रिस्त ही एकमात्र मुक्तिदाता है और प्रभु का वचन सत्य है।

हम यहां मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों पर गौर करते हैं और इनकी चर्चा केवल प्रभु के लिखित वचन के आधार पर करते है।

सबसे पहले, प्रभु ने मनुष्य के लिए एक शाश्वत मुक्ति तैयार की है। लेकिन क्या येशु क्रिस्त ने अपने पहले आगमन में मुक्ति की पूर्णता दी? इस मुक्ति की पूर्णता क्या है? यह वह कब देंगे?

दूसरा, प्रभु हमेशा मनुष्यों के द्वारा ही कार्य करते है और यह मुक्ति पहले प्रकट किए बिना और लोगों को इसके लिए तैयार किए बिना नहीं दी जा सकती और कोई भी प्रभु द्वारा भेजे बिना प्रचार नहीं सकता, इसलिए इस मुक्ति का प्रचार निश्चित समय पर किया जाता है। एक लिखित भविष्यवाणी है, कि प्रभु अंतिम समय में ऐसा ही करेंगे (१ पतरस १:५)। अब, जो प्रश्न उठते हैं, वे यह हैं कि: इस मुक्ति को कौन प्रकट या प्रघोषित करेंगे? इसकी प्रघोषणा कहां होगी?

तीसरा, क्योंकी प्रभु के पुत्र अंतिम समय में मुक्ति और दंड दोनों देने के लिए आते है, तो इस पृथ्वी पर किसे यह मुक्ति मिलेगी? उन्हें यह मुक्ति कहाँ से मिलेगी?

. बचायें गये लोग।

क्रिस्तिय विश्वास मुक्तिदाता और उसके द्वारा दिए जाने वाले मुक्ति पर आधारित है। क्रिस्तिय लोग वे हैं, जो विश्वास करते हैं, कि येशु क्रिस्त ही एकमात्र मुक्तिदाता हैं और उनके पीड़ा सहन, रक्त बहाने, क्रूस की मृत्यु और पुनरुत्थान द्वारा हम बचाए गए हैं। इस मुक्ति का अनुभव ही एक क्रिस्तिय के जीवन को आकार देता है। इसलिए, पिछले २००० वर्षों से, क्रिस्तियों ने मुक्ति का दावा किया है और उसका प्रचार किया है।

हम बाइबिल में कई बार पढ़ते हैं, जो प्रख्यापित करते हैं, कि हमें क्रिस्त द्वारा बचाया गया है। उदाहरण के लिए, प्रभु का वचन ऐसा सिखाता है: प्रभु की कृपा ने विश्वास द्वारा आप लोगों को मुक्ति दी है। यह आपके किसी पुण्य का फल नहीं है। यह तो प्रभु का वरदान है(इफिसियों २:८)। इसी तरह, बाइबिल में कई अन्य वचन भी हैं, जो साक्ष्य देते हैं कि हम पहले ही बचाए जा चुके हैं। (उदाहरण के लिए रोमियों.१०:१०,१ कुरिन्थियों. १:२१, इफिसियों. २:५, इत्यादि।)

एक वचन जिसका लोग अक्सर ज़िक्र करते हैं वह यह है: तब येशु ने उन से कहा, "संसार के कोने-कोने में जाओ और प्रत्येक प्राणी को शुभ समाचार सुनाओ। जो विश्वास करेगा और बपतिस्मा ग्रहण करेगा, वह बचाया जाएगा। जो विश्वास नहीं करेगा, वह दोषी ठहराया जायेगा। विश्वास करने वालों के साथ ये चिह्न होंगे: वे मेरा नाम ले कर भूतों को निकालेंगे, वे नई-नई भाषा बोलेंगे और साँपों को हाथ से उठा लेंगे । यदि वे विष पियेंगे, तो उस से उन्हें कोई हानि नहीं होगी। वे रोगियों पर हाथ रखेंगे और रोगी स्वस्थ हो जायेंगे।” (मारकुस १६:१५-१८)

लेकिन, यह एक निर्विवाद सच है, कि प्रभु के इस वचन में सभी सूचीबद्ध चिन्ह इनमें से किसी भी व्यक्ति में मौजूद नहीं हैं जो दावा करते हैं, कि उन्हें बचाया गया है। परन्तु, प्रभु का यह वचन सत्य है, इसलिये यह पूरा होगा। तो एक बात स्पष्ट है: इस वचन में वर्णित शुभ समाचार का अब तक प्रचार नहीं किया गया है; यहाँ वर्णित विश्वास अब तक उत्पन्न नहीं हुआ है (क्योंकि विश्वास सुनने से आता है); अभी तक किसी को भी यह मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है, जिसका साक्ष्य यह वचन देता है।

आइए, हम प्रभु के एक और वचन की जाँच करें। उस अनन्त जीवन के विषय में, जो वह देने जा रहे है, येशु क्रिस्त ने कहा: मैं तुम से सच-सच कहता हुं: जो विश्वास करता है, उसे शाश्वत जीवन प्राप्त है। जीवन की रोटी मैं हूँ। तुम्हारे पूर्वजों ने निर्जन प्रदेश में मन्ना खाया; फिर भी वे मर गये। मैं जिस रोटी के विषय में कहता हूँ, वह स्वर्ग से उतरती है और जो उसे खाता है, वह नहीं मरता। स्वर्ग से उत्तरी हुई वह जीवन्त रोटी मैं हूँ। यदि कोई इस रोटी में से खायेगा, तो वह सदा जीवित रहेगा। और जो रोटी मैं दूंगा, वह मेरी देह है जो मैं संसार के जीवन के लिए अर्पित करूंगा।"(योहन ६:४७-५१)।

येशु क्रिस्त, जिन्होंने हमें यह आह्वान दिया, कि अनन्त जीवन की रोटी के लिए कार्य करों, जो मनुष्य पुत्र देता है (योहन ६:२७), उन्होंने यह भी स्पष्ट रूप से प्रख्यापित किया, कि जो कोई भी जीवन की इस रोटी को खाएगा वह कभी नहीं मरेगा, बल्कि हमेशा के लिए जीवित रहेगा। मनुष्य की मृत्यु बीमारी के कारण, या बुढ़ापे की जटिलताओं के कारण या किसी घातक दुर्घटना का परिणामस्वरूप हो सकता है। फिर, यदि किसी व्यक्ति को कभी नहीं मरना है, तो उसके शरीर को बीमारियों, बुढ़ापे और मृत्यु (एक शब्द में कहें- जिर्णता) से हमेशा के लिए मुक्त होना होगा। येशु क्रिस्त ने कहा, कि यदि हम यह रोटी खाएंगे जो वह देते है, तो यह घटित होगा। और यही है वो प्रतिज्ञात अनंत जीवन या मुक्ति (१ योहन २:२५)।

परन्तु जितनों ने विश्वास किया, और जितनों ने उनके द्वारा दी गई रोटी खाई, वे अब तक जिर्णता को हरा न सकें। सभी लोग मर गये, जिर्ण हो गये। अभी तक किसी भी मनुष्य ने अनंत जीवन प्राप्त नहीं किया  (इब्रानियों. ११:३९-४०)। क्योंकि येशु क्रिस्त केवल सत्य बोलते हैं और वह स्वयं को इनकार नहीं कर सकते, इसलिए उनका वचन अवश्य पूरा होगा। इसलिए, यह स्पष्ट है कि (योहन ६:४७-५१) में जिस अनन्त जीवन (मुक्ति) का वादा किया है, वह अभी तक किसी को प्राप्त नहीं हुआ।

तो फिर, वह कौन सी मुक्ति है जो 'बचाए गए' लोगों को मिली है? यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो येशु क्रिस्त ने अपने पहले आगमन में कौन सी मुक्ति दी?

. येशु क्रिस्त ने जो मुक्ति दी।

येशु क्रिस्त में विश्वास करने वालों को कौन सी मुक्ति  प्राप्त हुई? प्रेरित पतरस ने पेंतेकोस्त के बाद अपने पहले भाषण में इसे स्पष्ट किया है (प्रेरित २:३७-३८)। येशु क्रिस्त ने हमारे पापों को ढ़ोया और पीड़ा सहन कर, रक्त बहाकर और क्रूस पर मृत्यु के माध्यम से उनका प्रायश्चित किया। यदि लोग सुसमाचार सुनकर पश्चाताप करते हैं, येशु क्रिस्त में विश्वास करते हैं और उनके नाम में बपतिस्मा लेते हैं, तो उन्हें अपने पापों की क्षमा और परिशुद्ध आत्मा का उपहार मिलेगा। इस मुक्ति को येशु क्रिस्त ने हमें अपने पहले आगमन में दिया।

लोगों ने विश्वास किया, कि मुक्तिदाता के बारे में लिखी गई भविष्यवाणियाँ येशु क्रिस्त में पूरी हुईं। इसलिए, उन्होंने येशु क्रिस्त को अपना प्रभु और मुक्तिदाता स्वीकार कर लिया। विश्वास करने वाले सभी लोगों को पापों की क्षमा की कृपा प्राप्त हुई। तो, वह यही मुक्ति है, जो उन्हें मिली - पाप क्षमा। उनके पाप क्षमा कर दिए गए हैं, इस वास्तविकता ने उनके ह्रदय को आनंद और समाधान से भर दिया । प्रभु ने परिशुद्ध आत्मा की शक्ति से उनके हृदयों से बुराई की सभी शक्तियों को दूर कर दिया (मत्ती १२:२८)। इस प्रकार उनके हृदयों में प्रभु के राज़ का आरंभ हुआ। यही वो प्रभु का राज्य है, जो एक विश्वासी के हृदय में स्थापित होता है। (यह प्रभु का पहला राज्य है, जो येशु क्रिस्त ने हमें सिखाया है।) क्या यह कृपा और अनुभव, प्रभु के इस राज्य का नहीं है, जो येशु क्रिस्त में विश्वास करने वालों को अब तक इस पृथ्वी पर प्राप्त हुआ है?

यदि कोई विश्वासी इस कृपा को खोए बिना और प्रभु के वचन के साक्षी के रूप में जीवन बिताता है, तो निस्संदेह वह, प्रभु के इस राज्य के अनुभव में मर जाएगा। जब कोई व्यक्ति इस तरह मर जाता है, तो वह प्रभु के राज्य के एक ऐसे उच्चतर क्षेत्र में जाता है और प्रवेश करता है (जाहिर सी बात है, शरीर के साथ नहीं), जिसको हम परदिसा या सुखधाम कहते हैं। यह प्रभु का दूसरा राज्य है जिसके बारे में येशु क्रिस्त ने प्रचार किया था (मरकुस ९:४७-४८)। यह प्रभु का राज्य उन सभी लोगों को प्राप्त हुआ, जो येशु क्रिस्त में विश्वास करते थे और जो विशुद्धि के साथ मरे।

(जारी रहेगा…)

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यथार्थ मुक्ति संपूर्ण व्यक्ति की मुक्ति है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा शामिल है।

वह अपनों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे स्वीकार किया, और उसके नाम पर विश्वास किया, उन सभों को उसने प्रभु की सन्तान बनने का सामर्थ दिया (योहन १:११-१२)।

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