शरीर की विमोचन - मुक्ति

यथार्थ मुक्ति संपूर्ण व्यक्ति की मुक्ति है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा शामिल है।

शरीर की विमोचन - मुक्ति

शरीर की विमोचन – मुक्ति

हम बाइबिल के कई अंशों में पढ़ते हैं, कि जो लोग येशु क्रिस्त में विश्वास करते हैं, उन्हें कृपा द्वारा बचाया गया है (२ तीमोथी १:९, इफिसियों २:८, इफिसियों २:५)। बहुत से लोग सोचते और सिखाते हैं, कि प्रभु के लोगों को मुक्ति मिल चुकी है। लेकिन परिशुद्ध आत्मा प्रभु के कई अन्य वचनों के माध्यम से सिखाते है, कि हमें एक मुक्तिदाता की प्रतीक्षा करने की आवश्यकता है और हमें अभी भी मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है (इब्रानियों ९:२७-२८, रोमियो ९:२७, रोमियो ५:१०, मारकुस १६:६, प्रकाशन ७:१०, १ पतरस १:१०-११, १ पतरस १:५, फिलिप्पियों ३:२०-२१)। लेकिन परिशुद्ध आत्मा यह भी सिखाते है, कि येशु क्रिस्त, प्रभु के एकमात्र पुत्र हैं, जो एकमात्र मुक्तिदाता है।

कई लोगों के ऐसा सोचने का कारण यथार्थ मुक्ति के बारे में उनकी विकृत धारणा है और वे ऐसा उन तत्वशास्त्रों के प्रभाव में करते हैं, जो प्रभु और प्रभु के वचन से सहमत नहीं हैं। उनमें से कई लोग सोचते हैं, कि मुक्ति का अर्थ है आत्मा का शरीर के बंधन से निकलकर किसी प्रकार की आनंदमय अवस्था में पहुँच जाना। लेकिन जो मुक्ति बाइबिल में वर्णित है और एकमात्र शिक्षक और प्रभु येशु क्रिस्त के पुनरुत्थान के माध्यम से सिद्ध की गई है, वह यह नहीं है।

मनुष्य का व्यक्तित्व आत्मा, मन और शरीर का बना हैं। यदि इन तीन पहलुओं में से कोई भी न हो या एक भी हटा दिया जाए, तो वह पूर्ण व्यक्ति नहीं है। यथार्थ मुक्ति संपूर्ण व्यक्ति की मुक्ति है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा शामिल है। यह वह मुक्ति है, जो प्रवाचकों और प्रेरितों ने सिखाई और जो येशु क्रिस्त ने हमें सिखाया और अपने पुनरुत्थान के माध्यम से दिखाया। यथार्थ मुक्ति शाश्वत जीवन है। यह प्रभु की प्रतिज्ञा है (१ योहन २:२५)। शरीर का जीवन रक्त में है(लैविय १७:११) और रक्त के अस्तित्व के लिए हमें शरीर की आवश्यकता है। इसलिए शरीर के बिना कोई शाश्वत जीवन नहीं है।

परन्तु जिस शरीर में पाप वास करता है, वहां अनन्त जीवन नहीं होगा। केवल ऐसे शरीर में जहां कोई पाप नहीं है और परिणामस्वरूप कोई मृत्यु नहीं है, वहां शाश्वत जीवन हो सकता है। इसका मतलब है, हमें अनन्त जीवन तभी मिलेगा जब हम येशु क्रिस्त के सदृश महिमापुर्ण और स्वर्गीय शरीर प्राप्त करेंगे।

हमारा सामान्य अर्थ मुक्ति का यह है, कि किसी के गिरने के बाद उठना और जो कुछ उसने खोया है उसे पुनः प्राप्त करना और उसे फिर कभी न खोने की क्षमता प्राप्त करना। मनुष्य किस स्स्थिति से गिरा? प्रभु पिता ने अपने बच्चों को सदैव युवा, अमर और अनश्वर बनाया। प्रभु ने उन्हें अपने सदृश महिमा और शक्ति के साथ संपूर्ण सृष्टि पर अधिकार और प्रभुत्व भी दिया (उत्पत्ति १:२६-२८, प्रज्ञा २:२३, प्रवक्ता १७:३-४)। उन्हें कोई रोग, बुढ़ापा या मृत्यु नहीं थी। परन्तु शैतान ने प्रभु को बच्चों को पाप करने के लिए धोखा दिया और उस कार्य के द्वारा प्रभु ने उन्हें जो कुछ दिया था, वह भी छीन लिया। यथार्थ मुक्ति तभी होती है, जब प्रभु के बच्चें वह सब कुछ पुनः प्राप्त कर लेते हैं, जो उन्होंने खोया है और उन्हें फिर कभी पाप न करने की शक्ति(कृपा) मिलती है।

अभी तक किसी को भी यह मुक्ति या शाश्वत जीवन प्राप्त नहीं हुआ है। येशु क्रिस्त -इम्मानुएल- प्रभु के पुत्र एकमात्र मुक्तिदाता है, जो यह मुक्ति देते है। यह मुक्ति हमें और कोई नहीं दे सकता। लेकिन येशु क्रिस्त ने अपने प्रथम आगमन में यह मुक्ति नहीं दी। २००० वर्ष पहले उन्होंने मृत्यु के अधीन होने के लिए स्वयं को शून्य बनाया और अपनी मृत्यु के द्वारा उन्होंने पापों की क्षमा की कृपा दि। वह मुक्ति का प्रथम चरण था। परन्तु अब वह उन लोगों के लिए अनन्त जीवन लेकर आये है, जो उन पर विश्वास करते हैं (योहन ३:१६, १ योहन ५:१०-१२)।

परिशुद्ध आत्मा ने पतरस के माध्यम से घोषणा की, कि यह वह मुक्ति है, जिसे प्रभु ने केवल अंतिम समय में प्रकट करने के लिए तैयार किया था(१ पतरस १:५)। येशु क्रिस्त -इम्मानुएल-जो अब इस पृथ्वी पर फिर से शरीर में आये हैं, वही हैं, जो इस मुक्ति को देते हैं (इब्रानियों ९:२७-२८)। यह मुक्ति पुनरुत्थान और रूपान्तरण है जो वह देते है (फिलिप्पियों ३:२०-२१)। यह हमारे दुर्बल शरीर की मुक्ति और पुत्रों के रूप में हमारा दत्तक लेना है (रोमियो ८:२३-२५, गलातियों ४:१-७)। हम इस प्रत्याशा के द्वारा बचाये गये हैं। चूँकि यह प्रत्याशा अभी तक हमारे अंदर साकार नहीं हुई है, हम अभी भी इस प्रत्याशा के पूरा होने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। यह प्रत्याशा इसी पृथ्वी पर होनी चाहिए और पूरी होगी।

इसलिए प्रभु के बच्चों को अभी तक मुक्ति प्राप्त नहीं हुई है। यह मुक्ति प्रभु पिता के साथ उस नई पृथ्वी में परिशुद्ध, अमर्त्य और अनश्वर शरीर के साथ रहने की प्रतिज्ञा है। एक बार जब हम मुक्त हो जाते हैं, तो इस पृथ्वी पर हमारे लिए कभी पाप, बीमारियाँ, बुढ़ापा या मृत्यु नहीं होगी (१ कुरिन्थियों १५:५१-५७)। इस प्रकार दैविक नीति प्रभु के बच्चों का स्वयं प्रभु के समान बनना है (१ योहन ३:१-३)।

ये देखो, प्रभु के पुत्र - इम्मानुएल - राजाओं के राजा और जो यह मुक्ति देते है, इस पृथ्वी पर दोबारा से चुके है! प्रभु हमारे साथ है!

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प्रभु के पुत्र जो प्रभु वचन है परिशुद्ध मां के गर्भ में वचन के रूप में आएं, न कि शरीर के साथ। तब प्रभु पिता के शरीर और रक्त में उनकी भागीदारी नहीं थी।

वह अपनों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे स्वीकार किया, और उसके नाम पर विश्वास किया, उन सभों को उसने प्रभु की सन्तान बनने का सामर्थ दिया (योहन १:११-१२)।

यह पृथ्वी और इसमें जो कुछ भी है - उसे हटा दिया जाना है, इस पृथ्वी पर हमारा कोई स्थायी नगर नहीं है। स्वर्गीय सियोन परिशुद्धि का एक निवास है, जो शैतान से अस्पर्ष है और बुराई से बेदाग है।

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