अंतिम न्याय विधी - युगों का अंत

प्रभु पिता ने एक न्यायसंगत विधि की योजना बनाई है और प्रभु वचन के माध्यम से इसके बारे में चेतावनी दी है। देखो, अन्तिम न्यायविधि का समय आ गया है।

अंतिम न्याय विधी - युगों का अंत

अंतिम न्याय विधी - युगों का अंत

प्रभु पिता ने एक न्यायसंगत विधि की योजना बनाई है और प्रभु वचन के माध्यम से इसके बारे में चेतावनी दी है। देखो, अन्तिम न्यायविधि का समय आ गया है। वे दिन निकट हैं जब गेहूँ खलिहान में इकट्ठा किया जाएगा और भूसी जला दी जाएगी! वह समय दूर नहीं है जब मनुष्य का न्याय उसके कर्मों के अनुसार किया जाता है। क्योंकि नीतिमान न्यायाधीश, यानी मनुष्य पुत्र, फिर से शरीर धारण करके आ चुके है। अब जो शेष रह गया है वह उनकी गौरवशाली अभिव्यक्ति, या प्रत्यागमन है। येशु क्रिस्त  (इमैनुएल) प्रभु पिता के नीतिमांनो को पुरस्कार देने और प्रभु का विरोध करने वाले पापियों को दंड देने के लिए प्रकट होने वाले हैं (रेव. २२:१२-१३, इस्सा, ४०:९-१०), जब आदेश दिया जायेगा और प्रधान स्वर्गदूत की वाणी तथा प्रभु की तुरही सुनाई पड़ेगी, मृतक और जीवित दोनों को उनके शरीर में किए गए सभी कार्यों का प्रतिफल पाने के लिए प्रभु के सिंहासन के सामने लाया जाएगा (१ थिस्स. ४:१६, मत्ती २५: ३१-३४, ४१, ईसीएल. १२:१३-१४, १ पेट, ४/५)।

वे कौन हैं जिन्हें अनंत काल तक शापित होने के लिए येशु क्रिस्त के बाईं ओर खड़े होने के लिए अलग किया जाएगा? यह वे लोग हैं जो परिशुद्ध बाइबल (लूका. ९/२६) में लिखे प्रभु वचनों के प्रति लज्जा महसूस करते थे और उन्होंने अपने जीवन में प्रभु के इन वचनों का पालन नहीं किया (मत्ती ७/२१-२३)। जिन्होंने अपने जीवन मे "येशु क्रिस्त के छोटे भाइयों" की मदद करने मे अपना हाथ आगे नहीं बढ़ाया। ये छोटे भाई उनकी "छोटी रेवड" के सदस्य हैं, जिन्हें आरंभ से ही येशु क्रिस्त के सादृश्य के अनुरूप चुना गया है। वे विश्वास करते हैं कि येशु क्रिस्त फिर से शरीर धारण करके इमैनुएल नाम में आये हैं और वे उनके परिवार के सदस्य हैं (मत्ती २५/४४-४५)। येशु क्रिस्त ने संसार के गरीब लोगों को नहीं, बल्कि अपने भाइयों को अपने समान माना, जिन्होंने प्रभु पिता से जन्म लिया (इब्रा. २/ ११) और उनके वचनों का पालन करते हैं (मत्ती १२/४९-५०) यह वे लोग हैं जो उनके सह-उत्तराधिकारी हैं (रोम. ८/१५-१७)।

येशु क्रिस्त (इमैनुएल) किन्हें अपनी दाहिनी ओर रखते हैं? यह वे लोग नहीं हैं जिन्होंने इस पृथ्वी पर संसार के मापदंड के अनुसार एक 'अच्छा जीवन' व्यतीत किया है। इसके बजाय यह वे लोग हैं जिन्होंने प्रभु के वचन पर अभिमान किया और उसका पालन किया। उन्होंने येशु क्रिस्त के परिवार के इन "नन्हे बच्चों" की सहायता की है  (मत्ती २५/४०)।

प्रभुपिता हमेशा अच्छाई को बुराई से अलग करते है। प्रभु द्वारा यह अलगाव आरंभ में ही शुरू हुआ जब उन्होंने प्रकाश को अंधकार से अलग किया। अंतिम न्यानविधि के समय प्रभु के पुत्र इमैनुएल जो आख़री विभाजन करेंगे उसे के साथ प्रभु पिता की यह प्रक्रिया जो उन्होंने आरंभ में शुरू की थी वह समाप्त हो जाएगा।

येशु क्रिस्त (इमैनुएल) के भाई जिन्हें राज्य दिया गया है, वे भी सिंहासन पर बैठेंगे और लोगों का न्याय करेगे (लूका.१२/३२, लूका. २२/२९-३०)। वे शापित स्वर्गदूतों का भी न्याय करेंगे (२ कुरिं. ६/२-३)। वास्तव में, प्रभु ने अपने बच्चों को उनके द्वारा बनाए गए प्राणियों पर प्रभुत्व रखने, परिशुद्धता और धार्मिकता से दुनिया पर शासन करने और निष्कपट हृदय से निर्णय सुनाने के लिए सृष्ट किया था। (ज्ञान. ९/२-३)।

पूरी दुनिया जानेगी और स्वीकार करेगी कि प्रभु नीतिमान है और उनके निर्णय सच्चे और धर्मनिष्ठ हैं। यह प्रभु की नीति है कि उनके बच्चे शैतान को नष्ट कर दें, जिसने उन्हें धोखा देकर वह सब कुछ लूट लिया जो प्रभु ने उन्हें दिया था (उत्पत्ति १/२६-२८, सर. १७/३-४, ज्ञान/ २/२३)। शैतानों को प्रभु की संतानों के पैरों के नीचे लाना और उन्हें नष्ट करना प्रभु की नीति है (रोमियों १६/२०)। यह प्रभु की नीति है कि सृष्टि प्रभु की संतानों की ओर से युद्ध करे और सृष्ट चीजें अपनी शक्ति भूल जाएं ताकि धर्मियों को भोजन मिले (ज्ञान. १६/१७, १६/२३)। प्रभु की नीति है कि सृष्टि अपने निर्माता के साथ जुड़कर दुष्टों को नष्ट करें। यह प्रभु की नीति है कि सभी दुष्ट जन यह दिखे और स्वीकार करे कि जिस प्रभु पिता को उन्होंने पहले जानने से इनकार कर दिया था वे ही एकमात्र सत्य प्रभु है (ज्ञान. १२/२६-२७, सर. ३४/४-६)। प्रभु की संतानों पर अत्याचार करने वालों को दंडित करना प्रभु की नीति है (१ थिस्स. १/६-७)।

देखो, युगों का अंत निकट है! प्रभु का वह दिन निकट है जब पृथ्वी जल जाएगी, और आकाश जलकर विलीन हो जाएगा! (२ पत. ३/१०-१२). येशु क्रिस्त के दूसरे आगमन के संकेत मिल गए हैं। युगों के अंत के संकेत हमारी आँखों के सामने घटित हो रहे हैं। हम जो इन सभी चीजों को देख रहे हैं हमें यह एहसास होना चाहिए कि येशु क्रिस्त (इमैनुएल) फाटक पर आ चुके हैं (मत्ती २४/३२-३५)।

जब प्रभु का वचन, जिसके माध्यम से सब कुछ बनाया और कायम रखा गया हैं, वापस ले लिया जाएगा तो सभी सृष्ट की गई चीजें नष्ट हो जाएंगी (२ पत. ३/५-७, इब्रा. १२/२५-२७)। इस प्रकार प्रभु का वचन, जो निर्माता है, विनाशक बन जाता है (शुरुआत और अंत प्रका. २१/६)। प्रभु का सर्वशक्तिमान वचन, प्रभु के विश्वसनीय आज्ञा की तेज तलवार वाहन करता कठोर योद्धा, सभी चीजों को मृत्यु से भर देगा (ज्ञान. १८/१४-१६)। देखो वे दिन निकट आ गए हैं जब प्रभु पृथ्वी पर से सब कुछ मिटा डालेगा! (सप. १/२-५)। यह लिखा है कि पाप के प्रभुत्व के अधीन यह वर्तमान पृथ्वी और स्वर्ग गायब हो जाएंगे (मत्ती ५/१८)।

प्रभु के महान और भीतीजनक दिन पर, जब सूर्य अंधकार से ढक जाएगा और आकाश की शक्तियां हिल जाएंगी, जो लोग सिय्योन पर्वत पर प्रभु पिता द्वारा एकत्रित और संरक्षित हैं, वे इसे सहन कर पाएंगे और इस पर विजय प्राप्त करेंगे (योएल २/३१-३२)। यहाँ तक कि जब पृथ्वी और आकाश हिलेंगे तब भी वह उनकी सुरक्षा मीनार और शरणस्थान होगा (योएल ३/१६)। इसलिए प्रभु अपने बच्चों और सभी लोगों को पश्चाताप करने और उन पर विनाश आने से पहले उनके पास लौटने के लिए बुला रहा है (सप. २/१-३)।

देखो, येशु क्रिस्त (इमैनुएल) सारी शक्ति, आधिपत्य और अधिकार को नष्ट करके प्रभु पिता को राज्य प्रस्तुत करते है। (१ कुरिन्थियों १५/२४)। वे मसीह-विरोधी को, उनके सभी शत्रुओं को, बुराई के कारणों का सर्वनाश कर देंगे और वे अंतिम शत्रु यानी मृत्यु को भी नष्ट कर देंगे।  अपने प्रियजनों को स्वर्ग के सीमांतों तक और नई पृथ्वी में ले जाएगे (१ थिस्स. ४/१७, यो. १४/१-३)

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यथार्थ मुक्ति संपूर्ण व्यक्ति की मुक्ति है, जिसमें शरीर, मन और आत्मा शामिल है।

वह अपनों के पास आया, और उसके अपने लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया। परन्तु जितनों ने उसे स्वीकार किया, और उसके नाम पर विश्वास किया, उन सभों को उसने प्रभु की सन्तान बनने का सामर्थ दिया (योहन १:११-१२)।

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