तीसरे प्रभु के राज्य का शुभसमाचार

राज्य का यह सुसमाचार वह शुभ समाचार है जिसकी घोषणा समय के अंत में की जाएगी। यह तीसरे प्रभु राज्य की शुभसमाचार है।

तीसरे प्रभु के राज्य का शुभसमाचार

तीसरे प्रभु के राज्य का शुभसमाचार

प्रभु का राज्य वह संविधान हैं, जहां सर्वशक्तिमान और सृष्टिकर्ता प्रभु का परिशुद्ध हित सबके द्वारा पूरा किया जाता है। प्रभु की इच्छा यह है, कि वह अपने प्यारे बच्चों के साथ इस प्रभु के राज्य में निवास करें। वह उद्देश्य, जो प्रभु ने अपने पुत्र येशु क्रिस्त को सौंपा, वह इस राज्य की स्थापना है।

प्रभु का  राज्य जहां नीति और स्नेह प्रचुर मात्रा में है और प्रभु के वचन के द्वारा शासन किया जाता है, यह राज्य प्रभु पिता की लालसा रही है, ठीक उसी समय से जब उन्होंने अपने बच्चों को ‘जन्म दिया’। यद्यपि मनुष्य ने पाप किया और प्रभु से दूर हो गए, उन्होंने उन्हें इस राज्य में वापस लाने के लिए एक योजना बनाई (यिर्मयाह २९:११-१४)। इसिलिए उनके पास प्रवचकों को भेजकर और उन्हें नियम देकर, उन्होंने एक जनता को अलग कर उन्हें तैयार किया। जब समय आया, उन्होंने अपने पुत्र येशु क्रिस्त को भेजा, प्रभु के राज्य के विषय में सीखाने और उन्हें इस राज्य की प्रवृत्तियां दिखाई।

पर इस राज्य में तीन राज्य है। दूसरे शब्दों में कहें, तो येशु क्रिस्त ने तीन राज्यों के बारे में सिखाया। इस तरह, तीन राज्य स्थापित है। पहले प्रभु का राज्य वह अवस्था है, जिसमें एक व्यक्ति में प्रस्तुत शरीर के नियम, जो आत्मा के विरुद्ध युद्ध करते हैं, उन नियमों को परिशुद्ध आत्मा की शक्ति द्वारा अधीन किया जाता है और वह व्यक्ति परिशुद्ध आत्मा के फल उत्पन्न करता है। पेन्तकोस्त के दिन येशु क्रिस्त में विश्वास करनेवालों, जब परिशुद्ध आत्मा प्राप्त हुआ, तब यह राज्य स्थापित हुआ।

परदिसा प्रभु का दूसरा राज्य है। पर परदिसा वह स्थान नहीं है, जहां प्रभु पिता, पुत्र, परिशुद्ध आत्मा और परिशुद्ध ज्ञान वास करते हैं। बल्कि वह स्थान है, जहां विश्वास में और विशुद्धि में मृत्यु प्राप्त करने वाले पहुंचते हैं। येशु क्रिस्त के क्रूस मरन और पुनरुत्थान के बाद ही, इस प्रभु के राज्य में प्रवेश मिला (इब्रानियों १०:१९-२०)। जो पहले प्रभु के राज्य के साथ मृत्यु प्राप्त करते, वे दुसरे प्रभु के राज्य में प्रवेश करते‌ है (मारकुस ९:४७-४८)

लेकिन, येशु क्रिस्त‌ ने एक प्रभु के राज्य के विषय में सिखाया, जो शक्ति और दृश्य चिन्हों के साथ आता है (मारकुस ९:१)। यह है तीसरा प्रभु का राज्य। यह पृथ्वी पर उतर कर आएगा और यहां पर स्थापित होगा (प्रकाशन २१:१-२)। वास्तव में, येशु क्रिस्त ने अपने शिष्यों को इस राज्य के आने के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा। (मत्ती ६:९-१०)। प्रभु के लोग पिछले २० शतको से इस राज्य के आने के लिए प्रार्थना कर रहे थे। यह राज्य तब स्थापित होता है, जब येशु क्रिस्त प्रभु के बच्चों पर अपने महिमापूर्ण प्रत्यागमन‌ में राज़्य करते हैं। यह राज्य सारी महिमा के साथ नई पृथ्वी में सदा बना रहता है।

यह राज्य वह संविधान है, जहां सारी सृष्टि और सारी जानताओ का शासन प्रभु के वचन से होता है। परदिसा में पाप करने से पहले, यह प्रभु का वचन ही था, जो मनुष्य और सारी सृष्टि पर शासन करता था। इसी प्रभु वचन के शासन को पुनस्थापित करने के लिए, प्रभु के पुत्र इम्मानुएल महिमा में प्रकट होने जा रहे हैं। ये‌ देखो! यह शुभ-समाचार की प्रभु के पुत्र, सभी लोगों पर लोह दंड से राज्य करने के लिए आ रहे हैं, अभी‌ प्रचार हो रहा है (यशायाह ४०:९-१०, प्रकाशन १२:१,५)। वे उन बलहीन शरीरों का रूपांतरिकरण करेंगे, जो प्रभु के वचन और ज्ञान से भरे हैं (फिलिप्पियों ३:२०-२१)। जो पापी है और शैतान के है, उन्हें वे दंडित करेंगे (यशायाह ६३:१-६)। इस प्रकार वे देविक नीति को पूर्ण करेंगे (यशायाह ४२:२-४, २ कुरिन्थियों ५:१०)।

येशू क्रिस्त ने प्रख्यापित किया, कि वे इस संसार के नहीं है (योहन ८:२४)। उन्होंने जिस रेवड को इस संसार से चुना, वह भी इस संसार के नहीं है (योहन १५:१८-१९)। जो इस संसार के लिए अमूल्य है, वह प्रभु के लिए घृणित है (लूकस १६:१५)। जिसे इस संसार का मित्र बना है, वह स्वयं को प्रभु का शत्रु बना लेता है (याकुब ४:४)। परिशुद्ध आत्मा यह चेतावनी देते हैं, कि जो व्यक्ति संसार से स्नेह करता है और अपने शरीर के नियंत्रण में चलता है, उसमें प्रभु का स्नेह वास नहीं करता (१ योहन २:१५-१७)। येशु क्रिस्त ने हमें यह सिखाया, कि धन से एक व्यक्ति का जीवन सार्थक नहीं बनता है। (लूकस १२:२०-२१)। जो इस संसार में धन इकट्ठा करता है, बिना अपने आप को प्रभु के सानिध्य में ‘धनी’ बनाए, वह सबसे बड़ा मूर्ख है(लूकस १२:२०-२१)। तो उन्होंने हमें सिखाया, कि हमें यथार्थ संपत्ति को स्वर्ग में एकत्रित करना है (मत्ती ६:१९-२०)। येशू क्रिस्त ने अपने जन्म, जीवन, मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा शैतान के संसार को चुनौती देकर उसे हरा दिया।

वह आज्ञा जो प्रभु ने आदम को दी और आदम के द्वारा मनुष्य जाति को दी, वह यह थी कि वे इस संसार को और शैतान को अपने‌ अधीन कर वापस लौटे (उत्पत्ति १:२८)। पर जब कभी मनुष्य ने प्रभु द्वारा तैयार किये गये चीजों पर प्रत्याशा नहीं रखी और अपने लिए इस अल्पकालिक संसार में राज्य बनाने की कोशिश की, तब प्रभु ने अपने स्नेह द्वारा उन राज्यों को (१ कुरिन्थियों २:९, २ कुरिन्थियों ४:१८, इब्रानियों १३:१४), शिनार के मैदान पर स्थापित बाबेल संस्कृति से लेकर भौतिकवादी-उपभोक्तावादी संस्कृति तक जिसे दुनिया इस समय बनाने पर अड़ी हुई है, नष्ट कर दिया। विनाश ही इन संस्कृतियों की नियति है।

प्रभु ने अपने राज्य की तैयारी के लिए कलीसिया की स्थापना की। येशु क्रिस्त ने अपने प्रेरितों को वैसे ही भेजा, जैसे उन्हें प्रभु पिता ने भेजा था (योहन‌ २०:२१)। इसका मतलब है, प्रेरितों को इस राज्य के लिए लोगों को तैयार करने के लिए, अपना क्रूस लेकर और प्रभु के राज्य का साक्ष्य देकर काम करना चाहिए। इसी उद्देश्य के लिए प्रभु पिता कार्य कर रहे है (यशायाह ६४:४), प्रभु के पुत्र कार्य कर रहे है (योहन‌ ५:१७), परिशुद्ध आत्मा कार्य करते है (1 कुरिन्थियों १२:४-७) और परिशुद्ध ज्ञान कार्य करती है (ज्ञान ९:१०)। कलीसिया वह समूह है, जो प्रभु की इच्छा को पूरा करने के लिए संसार से अलग किये गये है, प्रभु के वचन को कार्यान्वित कर।

लेकिन, कलीसिया धीरे-धीरे भटक गए और इस पृथ्वी पर एक राज्य बनाने के लिए कार्य करने लगे। उन्होंने इस पृथ्वी पर धन इकट्ठा किया है, वे इस दुनिया की महिमा की कामना रखते हैं, ऐसे संस्थान चलाते हैं, जो इस भौतिकवादी संस्कृति का पोषण करते हैं, प्रभु के प्रति ऐसी भक्ति विकसित करते हैं, जो केवल इस सांसारिक जीवन के लिए है और उन्होंने इस दुनिया के तत्वों से उत्पन्न होने वाले तत्वशास्त्रों को अपनाया है। सभी गतिविधियाँ जो वे करते हैं और जो संस्थाएँ वे चलाते हैं, वे प्रभु के लोगों को इस सांसारिक राज्य से बाँधे रखते हैं। इन कलीसियाओं के स्वामित्व वाली इन संस्थाओं को चलाने से, न तो प्रभु‌‌ को और न ही उनके राज्य को लाभ हो रहा है। वे उन लक्ष्यों और उद्देश्यों के विपरीत हैं, जो कलीसिया की स्थापना करते समय प्रभु के मन में थे। प्रभु ने इनमें से किसी भी कलीसिया से ऐसा करने के लिए नहीं कहा है। इन कलीसियाओं के तथाकथित ‘शुश्रूषकों’ का उस उद्देश्य से कोई लेना-देना नहीं है, जो येशु क्रिस्त ने प्रेरितों को सौंपा था। इन कलीसियाओं में कुछ ही सच्चे अनंत जीवन के बारे में सिखाते हैं, जिसकी प्रतिज्ञा प्रभु पिता ने की थी। वे जो भी कसरत करते हैं, वह वास्तव में प्रभु के लोगों को प्रभु का राज्य प्राप्त करने से रोकता है। इन कलीसियाओं द्वारा संचालित, किसी भी संस्थानों से निकलने वाला कोई भी छात्र या व्यक्ति अनंत जीवन या येशु क्रिस्त‌‌, जो प्रभु‌ के बच्चों को नई पृथ्वी पर ले जाने के लिए फिर से आते है, उसके बारे में नहीं जानते है।

प्रभु के लोगों ने इस सांसारिक जीवन के लिए केवल येशु क्रिस्त‌‌ पर अपनी प्रत्याशा रखी है। लेकिन परिशुद्ध बाईबल के अनुसार, जो लोग ऐसा करते हैं, वे सभी लोगों में सबसे अधिक दुर्भाग्यशाली हैं(1 कुरिन्थियों १५:१९)। ये कलीसियायें उस शाश्वत शहर के बारे में नहीं सिखाते हैं, जिसके वास्तुकार और निर्माता प्रभु पिता है और न ही उस शहर तक पहुंचने के रास्ते के बारे में सिखाते हैं (इब्रानियों ११:१०)। इसलिए इन कलीसियाओं के अधिकारी ने एक ऐसे लोगों का गढ़ बन गये है, जो स्वर्ग में संपत्ति इकट्ठा करने के बजाय, इस पृथ्वी पर धन इकट्ठा करने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं। इन लोगों का हृदय इस संसार की वस्तुओं पर लगा है। वे उसकी खोज नहीं करते, जो उन्नतओं में है (कुलुस्सियों ३:१-३)।

प्रेरितों ने लगातार पुनरुत्थान के बारे में सिखाया। परिशुद्ध बाईबल में धर्मपत्र पर्याप्त रूप से साबित करते हैं, कि यही वह वास्तविकता थी, जिसने प्रेरितों को तीक्ष्णता से भर दिया। जो लोग येशु क्रिस्त से पहले जीवित थे, उन्होंने पुनरुत्थान की आशा के कारण सहनो से दूर नहीं रहें। उदाहरण के लिए, मक्काबी की पुस्तक अध्याय ७ में, एक माँ और उसके सात बेटे पुनरुत्थान के बारे में, प्रभु के प्रतिज्ञा पर भरोसा रखते हुए, गर्व से उत्पीड़कों के हाथों मौत को गले लगाते हैं। लाजरस, जिसे येशु क्रिस्त ने मृत्यु से पुनर्जीवित किया था, उसकी बहन मर्था, अंतिम समय में शरीर के पुनरुत्थान में अपना विश्वास स्वीकार करती है (योहन ११:२३-२४)। ये सब साबित करता हैं, कि प्रभु ने बहुत लंबे समय तक पुनरुत्थान के बारे में सिखाया था। प्रभु‌  के लोगों को रूपांतरिकरण के बारे में केवल येशु क्रिस्त के द्वारा पता चला(मत्ती १७:१-२)। प्रेरितों ने ताबोर पर्वत पर जो रूपान्तरण देखा, वह उस रूपानतरिकरण का एक दृश्य पूर्वावलोकन था, जो युग के अंत में प्रभु‌ के बच्चों को प्राप्त होगा (1 कुरिन्थियों १५:५१-५५, फिलिप्पियों ३:२०-२१)। लेकिन, वर्तमान कलीसियाओं के तथाकथित विद्वानों के लिए, प्रभु के ये सत्य केवल पुराने किस्से और कहानियाँ हैं।

प्रभु के पहले और दूसरे राज्य का सुसमाचार पूरे विश्व में प्रचारित किया गया है (कुलुस्सियों १:२३)। लेकिन मत्ती २४:१४ में लिखा है, कि प्रभु‌ के राज्य का यह शुभसमाचार सभी लोगों की साक्ष्य के लिए संसार भर में प्रचार किया जाएगा और फिर अंत आ जाएगा। मत्ती अध्याय २४ संपूर्ण रुप से येशु क्रिस्त के दूसरे आगमन और युग के अंत के बारे में है। दूसरे शब्दों में, यह प्रभु के तीसरे राज्य का शुभसमाचार है, जिसका प्रचार युगों के अंत में किया जाएगा। यह शुभ समाचार है, जो येशु क्रिस्त के महिमापूर्ण प्रत्यागमन,‌ उनके शासनकाल, उनके द्वारा दी जाने वाली मुक्ति और उनके द्वारा किए जाने वाले न्यायविधि के बारे में प्रचार है। ये देखो, प्रभु शक्ति के साथ आ रहा है; वह अपनी भुजाओं के बल से शासन करते है; उनका प्रतिफल उनके पास है; हम उन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखेंगे। यह प्रघोषणा ही शुभसमाचार है (यशायाह ४०:९-१०, ५२:६-८)। प्रभु के तीसरे राज्य का यह शुभसमाचार उन लोगों के लिए मुक्ति लाता है, जो इसके लिए चुने गए हैं और उन लोगों के लिए सज़ा लाता है, जिनका न्यायविधि किया जाता है।

ये देखो, प्रभु‌ के तीसरे राज्य का शुभसमाचार अब प्रचार किया जा रहा है। केवल वे ही लोग, जिन्हें प्रभु के राज्य के रहस्यों को जानने का वरदान दिया गया है, इसे समझेंगे (मारकुस ४:१०-१२)। फिर भी लोग इधर-उधर भागेंगे और जानकारी बढ़ेगा, केवल वे ही इसे समझेंगे जिनको प्रभु की ओर से ज्ञान प्राप्त‌ होता है। यदि कोई प्रभु द्वारा चुना गया है, तो केवल वे ही इस शुभसमाचार को स्वीकार कर सकते है (दानिएल १२:१, ४,८-१०)।

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