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एम्परर इम्मानुएल चर्च, या सियोन, केरल की सांस्कृतिक राजधानी त्रिशूर के मुरियाड पंचायत में स्थित एक ईसाई आराधना केंद्र है। प्रभु के पुत्र येशु मसीह के दूसरे आगमन का शुभसमाचार सुनाना और प्रभु की प्रजा को इसके लिए तैयार करना सियोन का लक्ष है। केरल के विभिन्न हिस्सों से, अन्य राज्यों से, और यहां तक कि दुनिया के विभिन्न भागों से लोग शुभसमाचार सुनने के लिए सियोन आते हैं। इसलिए, प्रभु के पुत्र के दूसरे आगमन में विश्वास रखने वाले बहुत से लोग इस उपासना स्थल के आसपास रहते हैं। सियोन, जो कि भविष्यद्वाणी और प्रेरित मिशनों का उत्तराधिकारी है, अन्य ईसाई सभा या व्यवस्थाओं के अधिकार के अधीन नहीं है।

इसका नाम एम्परर इम्मानुएल क्यों रखा गया है?
प्रभु के पुत्र के दूसरे आगमन पर वे जो नया नाम प्राप्त करते है वह इम्मानुएल है। (यशायाह ७:१४)
येशु मसीह के दूसरे आगमन में वे पाप का प्रायश्चित करने के लिए नहीं, बल्कि राजाओं के राजा बनने के लिए आएंगे। राजाओं के राजा को अंग्रेजी में एम्परर कहा जाता है। इम्मानुएल जो एम्परर है वह एम्परर इम्मानुएल है। (इब्रानियों ९:२८, प्रकाशितवाक्य १९:१६)।
यानी वह फिर एम्परर इम्मानुएल नाम से आये हैं। संक्षेप में, सियोन की यह प्रणाली प्रभु के पुत्र की द्वित्य आगमन पर उनका स्वागत करने और उनके लिए लोगों को तैयार करने के लिए स्थापित की गई है और इसे उनके नाम पर "एम्परर इम्मानुएल चर्च" कहा जाता है।

एम्परर इम्मानुएल चर्च को चर्च ऑफ़ लाइट क्यों कहा जाता है?
जब परिशुद्ध माँ १९९० में, मेक्सिको में प्रकट हुईं, तो परिशुद्ध माँ ने कहा कि "प्रभु के पुत्र के दूसरे आगमन पर, प्रकाश का सभा अचानक उठेगा, जो कि उसके लिए पूरी दुनिया भर में बनेगी।
प्रभु इस चर्च समुदाय को प्रकाश का सभा कहते हैं क्योंकि वे उनमें विश्वास करते हैं और इम्मानुएल का स्वागत करने के लिए तैयार हैं, जो प्रकाश है और फिर से शरीर धारण कर आये है।

इसे सियोन क्यों कहा जाता है?
सियोन उस स्थान का नाम है जो प्राचीन इजराइल में यहूदियों के राजा दाविद का महल और किला था। अर्थात् सियोन वह किला है जिस पर दाविद ने कब्ज़ा कर लिया था। दो हजार वर्ष पूर्व दाविद के वंश में येशु मसीह का जन्म हुआ।
प्रभु का वचन कहता है:
क्योंकि प्रभु ने सियोन को चुना है और उसे अपने निवास स्थान बनाने की इच्छा की है: क्योंकि प्रभु ने सियोन को चुना है और उसे अपने निवास निवास स्थान बनाने की इच्छा की है। (भजन संहिता १३२:१३)
लेकिन दो हजार साल पहले वह सियोन नामक जगह में नहीं रहते थे, वह चरनी में जन्में थे और कलवारी के क्रूस पर मरे।
परन्तु उनके दूसरे आगमन में वह याकूब के वंशजो के पास जो अपने अपराधों से पलट कर पश्चाताप करते है, वह उनके लिए सियोन में मुक्तिदाता के रूप में आएंगे। (यशायाह ५९:२०)
इसलिए, नबियों के ग्रंथों द्वारा, प्रभु के पुत्र का दूसरा आगमन सियोन में, अर्थात् दाविद के कुटुंब में होगा।प्रभु ने इस दिव्य व्यवस्था को केरल के मुरियाड में प्रभु के पुत्र के दूसरे आगमन के निवास स्थान के रूप में तैयार किया है। इसीलिए इस व्यवस्था को सियोन कहा जाता है।

क्योंकि प्रभु ने सियोन को चुना है और उसे अपने निवास स्थान बनाने की इच्छा की है: "यह युग्युगांत मेरा विश्रामस्थल होगा है, यहां मैं रहूँगा, क्योंकि मैंने इसकी इच्छा की है

भजन संहिता १३२:१३-१४

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